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मजाक बना सूचना का अधिकार कानून : महिला एवं बाल विकास विभाग का कारनामा उजागर, प्रभारी मंत्री ने दिए थे जांच और कार्रवाई के निर्देश, ऐसे में कैसे होगा दूध का दूध, पानी का पानी…?

मुंगेली. लगता है आचार संहिता लगते ही अब मंत्री के उन निर्देशो का कोई असर नही जो कि आदर्श आचार संहिता लगने के पूर्व जिले के प्रभारी मंत्री लखनलाल देवांगन ने जिले के महिला एवं विकास विभाग के अफसरों को समीक्षा बैठक में दिए थे. उन्होंने दो टूक में महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसरों को जिले में हो रहे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका की भर्ती में गडबड़ी से संबंधित शिकायतों का निराकरण करते हुए ,दुरुस्त करने के निर्देश दिए थे. जिसके बाद मामले को गंभीरता से लेते हुए कलेक्टर राहुल देव के द्वारा इस तरह के शिकायतों के निराकरण करने के लिए मामले की सुनवाई न्यायालय में किया जा रहा है जो कि विचाराधीन है. कलेक्टर के इस पहल पर पीड़ितों को तात्कालिक न्याय की उम्मीद तो जगी लेकिन लगता है. महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसर नही चाहते कि मामले में दूध का दूध और पानी का पानी हो. तभी तो शिकायत कर्ताओ को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका भर्ती में गड़बड़ी से सम्बंधित दस्तावेज की जरूरत पड़ रही है. इसके लिए महिला एवं बाल विकास विभाग के दफ्तरों में संबंधितों के द्वारा RTI कानून के तहत जानकारी मांगे जाने पर विभाग के अफसरों के द्वारा गोलमोल जवाब देकर जानकारी नही दी जा रही है. इससे नाराज होकर शिकायतकर्ता कुंवर सिंह ने कलेक्टर राहुल देव के माध्यम से राज्य सूचना आयुक्त को शिकायत कर RTI कानून को मजाक समझने व नियमो की धज्जियां उड़ाने वाले अफसरों पर कार्रवाई की मांग किया है.

किस बात का सता रहा डर .?

शिकायतकर्ता का कहना है कि महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों को शायद इस बात का डर है कि कहीं उनके द्वारा किया गया कारनामा बाहर न आ जाए, शायद इसी वजह से जानकारी देने में आनाकानी किया जा रहा है. हद तो तब है जब अपील करने के बाद भी आवेदनकर्ताओं को जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है.

जानिए क्या है पूरा मामला

जानकारी के मुताबिक शिकायतकर्ता कुंवर सिंह ने 11 मार्च 2024 को जनसूचना अधिकारी परियोजना अधिकारी एकीकृत बाल विकास परियोजना मुंगेली 02 जिला मुंगेली के पास आंगनबाड़ी भर्ती में चयन हुए अभ्यर्थी के आवेदन के साथ संलग्न दस्तावेज अंकसूची, रोजगार पंजीयन, एवं जाति निवास सहित भर्ती की वरीयता सूची एवं नियुक्ति प्रमाण पत्र की प्रमाणित प्रति सूचना का अधिकार के तहत मांगी थी. जिस पर उन्हें निर्धारित समयावधि पूरी हो जाने के बाद अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत जानकारी दिया जाना संभव नहीं है, कहते हुए पत्र जारी कर दिया गया. इस पर आवेदक का कहना था कि उसने जो सूचना मांगी है वह आंगनबाडी भर्ती में जो धांधली की गई है उसका खुलासा हो जाना उल्लेख किया है, उसने यह भी कहा है कि यही कारण है कि उसे सूचना नहीं दी जा रही है. शिकायत में उसने यह भी उल्लेख किया है कि उसके द्वारा मांगी गई सूचना में ऐसे दस्तावेज भी शामिल हैं जिनको सार्वजनिक करने पर भी, किसी की व्यक्तिगत गोपनीयता भंग नहीं होगी और न ही देश की एकता व अखंडता पर कोई दाग लगेगा. इसके बाद भी उसे सूचना नहीं दिया जाना विभाग की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़ा कर रहा है.

पूर्व में ऐसे मामलों पर दी गई है जानकारी

यह भी जानकारी सामने आ रही है कि महिला बाल विकास विभाग द्वारा वर्तमान में जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका की भर्ती की गई उसमें अनियमितता होने संबंधी शिकायतों की एक लंबी फेहरिस्त है, इसके चलते क्षुब्ध अभ्यर्थियों द्वारा सूचना का अधिकार के तहत चयनित अभ्यर्थियों से संबंधित निजी जानकारी मांगी थी, जिस पर विभाग द्वारा उन्हे जानकारी सौंप दी थी जबकि कुछ मामले ऐसे हैं जिसमें विभाग द्वारा निजी जानकारी होने का हवाला देकर जानकारी नहीं देने के लिए आरटीआई एक्ट के प्रावधानो का दुरूपयोग किया जा रहा है. एक जैसे ही दो आवेदन और दोनो आवेदनों में अलग-अलग कार्यवाही से अब विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्न खड़ा कर रहा है.

सूचना का अधिकार कानून का बन रहा मजाक

शिकायत कर्ताओ ने आरोप लगाया है कि मुंगेली में महिला बाल विकास विभाग द्वारा सूचना का अधिकार कानून का केवल मजाक भर बनाया नहीं जा रहा, मजाक बनाने के साथ साथ इसकी खुलेआम धज्जियॉ उड़ाई जा रही है. प्रशासन को चाहिए कि यदि सरकारी तंत्र पर किसी मामले में अनियमितता का आरोप लग रहा है, तो उन आरोपों को सच्चा या फिर झूठा साबित करने के लिए पूरी पारदर्शिता के साथ दस्तावेजां का प्रति परीक्षण कराने के लिए तैयार रहे , इसीलिए वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम लागू किया गया है, लेकिन जिन उद्देश्यों को लेकर इस कानून की स्थापना की गई है उसका दुरूपयोग कैसे किया जाता है, सरकारी तंत्र को इसकी बखूबी जानकारी है.

शिकायत कर्ताओ का कहना है कि महिला बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी जिन्हे जन सूचना अधिकारी भी कह सकते हैं सभी परियोजना में चाहे वह मुंगेली, लोरमी या पथरिया परियोजना से संबंधित हो, सभी का यही हाल है, सूचना का अधिकार के तहत जैसे जनसूचना अधिकारी जवाब नहीं दे रहे हैं ठीक वैसे ही कारनामे जिला कार्यालय में बैठे अपीलीय अधिकारी कर रहे हैं. इनके पास जो आवेदन अपील के माध्यम से पहुंच रहे हैं उस पर निर्धारित समावधि के बाद भी निराकरण करने की कार्यवाही नहीं की जा रही है. वहीं जानकारी पाने की जुगत में हितग्राही विभाग के चक्कर काट रहे हैं.

सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 में स्पष्ट उल्लेखित है कि कुछ ऐसे विषय जिन पर मांगी गई सूचनाओं को नहीं दिया जा सकता है। ऐसे विषय देश हित में और किसी व्यक्ति के हित में होते हैं जिन से संबंधित सूचनाओं को नहीं दिया जा सकता। यदि इन विषयो से संबंधित सूचनाओं को दे दिया जाए तो समस्या खड़ी हो सकती है और देश की एकता अखंडता तथा किसी व्यक्ति के अधिकारों को क्षति हो सकती है.
जबकि इस मामले में जो जानकारी मांगी जा रही है उससे न तो देश की एकता, अखंडता की क्षति हो रही है और न ही किसी व्यक्ति के अधिकारों की. इस मामले में जानकारी उपलब्ध नहीं कराना विभाग को संदेह के दायरे में ला रहा है. वहीं शिकायतकर्ता ने इस मामले में कठोर कार्यवाही करने हेतु सूचना आयोग की शरण ली है.

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